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पचास, भांगे, दया, सत्य, शील, संतोष, क्षमा, नम्रता, सरलता, निर्लोभी, अवेदी, अकपायी, अलेशी. अयोगी, अशरीरी, धर्म, व्रत, नियम, पच्चक्खाण, पांच चारित्र, छः निर्ग्रन्थ इत्यादि संवर में समाविष्ट है ६ । बारह भेदी, तप, बराणवे पडिमा, इकराणवे विनय, पांच सज्झाय, दो ध्यान, नौ प्रकार के प्रमुख का गिनना, तप, जप, सूत्र पढ़ना, धर्म कथा करना इत्यादि निर्जरा में समाविष्ट है ७ । एक सौ अड़चास प्रकृति की स्थिति, अनंती कर्म वर्गणा, ये बंध में समाविष्ट है ८ । ज्ञानादि मोक्ष मार्ग कर्म का क्षय होना ये मोक्ष में समाविष्ट है ९ ।
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दस दान किस में समावे ? एक दान पुण्य में समाविष्ट होता है; एक पाप में समाविष्ट होता है। आठ दान पुण्य पाप दोनों में समाविष्ट होते हैं, सचिंत जल जीव में, मिश्र जल सचित अचित दोनों में, सचित योनी जीव में, मिश्र दोनों में ऐसे तीन आहार । चौरासी लाख जीव योनी दोनों में, एक क्रोड़ साढ़े सित्यानवें लाख कुल क्रोंड़ी जीवों में, धर्म पक्ष संवर में, अधर्म पक्ष आश्रव में, मिश्र - पक्ष आश्रव संवर दोनों में, ती संयमी पच्चक्खाणी, धर्म जागृत पंडित, धर्म व्यवसाय, ये संवर में अनती, असंयमी,
अपच्चक्खाणी, अधर्म, बाल व्यवसाय,
बाल मरण, ये आश्रव में, व्रतात्रती, संयता
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उपक्रम करण. संयती, पच्च