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२ - धनवाय, ३ - तनुवाय, ७ - चार शरीर ८ बादर पुद्गलों का स्कन्ध, १४ छः द्रव्य लेश्या, १५ एक काय योग इन पन्द्रह बोलों में पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध, आठ स्पर्श, ये बीस बोल पावे, ये पैंतालीस बोल रुपी के हैं, और अठारह पाप का त्याग, वारह उपयोग, छः भाव लेश्या, चार संज्ञा, चार बुद्धि, चार अवग्रहादि, पांच उट्ठाणादि, तीन दृष्टि, धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाशास्ति, जीवास्ति, काल द्रव्य इन ६९ बोलों में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श नहीं होते हैं अतः अरुपी है ।
पुनः गाथा कहते हैं "कमट्ठ पावट्ठाणा, मणवय जोगाय कम्म देहाय । एए चउफासा पन्नत्तं तणवायं घणो दही || १ || उरालाइ चउदेहा, पुग्गलत्थि काय दव्व लेसाय । तह काय जोग एसा नायव्वा अट्ठफासाय || २ || धम्मा धम्मागासा, जीवा अद्धा पात्र ठाणाए । विरइय, दिट्ठी पंच-ठाणा उबओग, भाव लेसाय || ३|| उगाह सण्णा बुद्धा, चउ चउ एग सट्ठीअ । एए सव्वे भणिया, अरुविणो तथा नायव्वा ||४|| इस अपेक्षा पुण्य पाप बंध ये तीन कर्म हैं, इस कारण से रूपी कहा । पुनः आश्रव के भेद ६, द्रव्य लेश्या ३ योग, ५ शरीर इत्यादि रूपी है, और छः भाव लेश्या, एक मिथ्यादृष्टि, चार संज्ञा इत्यादि अरूपी है, इसलिये दोनों रुपी अरुपी दिखाते हैं, परन्तु