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(१३६) (७) बंध को अरुपी किस अपेक्षा से कहा ? बंध करने के उपाय अरुपी है तथा निश्चय नय में तो जीव को अजीव बांधने में समर्थ नहीं। जीव जीव के अशुभ भाव से ही बंधता है, वे भाव अरुपी है । इस अपेक्षा से बंध को अरुपी कहा । बंध को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? जो कम के एक सौ वीस प्रकृति के शुभाशुभ परमाणु बांधे हैं, वे परमाणु रुपी है, इस अपेक्षा से बंध को रुपी कहा । (८) मोक्ष को अरुपी किस अपेक्षा से कहा ? जीव कम से मुक्त हुआ, उज्जवल हुआ वह मोक्ष है। उज्जवल होना अपी है तथा कर्म से मुक्ति पाकर सिद्ध गति में गया, सिद्ध है, भगवान है, शाश्वत है, उन्हें किसी अपेक्षा से मोक्ष कहा, सिद्ध अरुपी है, इस अपेक्षा से मोक्ष को अरुपी कहा (९)। . औपचारिक नय से तो नौ तत्त्व रुपी भी है, तथा अरुपी भी है, परन्तु मुख्य नय में चार रुपी, चार अरुपी तथा एक मिश्र है, ये किस अपेक्षा से है ? श्री भगवती सूत्र के बारहवें शतक के पांचवें उद्देश्य में रुपी अरुपी के बोल कहे हैं, वहां आठ कम अट्ठारह पाप स्थानक, दो योग, कार्मण शरीर, सूक्ष्म पुद्गलों का स्कन्ध इन तीस बोलों में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध, चार स्पर्श (शीत, उष्ण स्निग्ध, लुस) ये सोलह गोल पावे । १-घनोदधि,