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(१३४) हैं । योग आत्मा है । इस अपेक्षा योग अरूपी है । (५) । प्राणातिपात आदि पांच में प्रवृति ना करना जीव का । व्यापार है जो अरूपी है। पांच इन्द्रियों के विषय का । आस्वादन करना, तथा भाव इन्द्रियां अरूपी है, तीन योग का प्रवृतना, भंडोपगरण सूई कुसग्ग लेना, देना, रखना ये सब जीव के व्योपार है । इस अपेक्षा से आश्रव अरूपी है । ___आश्रव को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? आश्रव कर्म का कर्ता है, और कर्म का कर्ता कर्म है, छः द्रव्य लेश्या रूपी है, तथा पच्चीस क्रिया आश्रव है। श्री ठाणांग सूत्र के दूसरे अध्याय में पच्चीस अजीव क्रिया कही है। इस अपेक्षा से आश्रव को रूपी कहा है, मिथ्यात्व आश्रव को रूपी किस अपेक्षा से कहा १ मिथ्यात्व के मिथ्यात्व मोहनी कर्म के अनंत प्रदेशी स्कन्ध है तथा मिथ्यात्व से अशुभ प्रकृति के परमाणु आते हैं इसलिए आते हुए कर्म को भी आश्रय कहते हैं, पहिले उदय भाव में कमें परमाणु है उन्हें भी मिथ्यात्व कहते हैं, इस अपेक्षा से मिथ्यात्व को रूपी आश्रव कहा है । (१) अव्रत आश्रय रुपी किस अपेक्षा है ? अबत अप्रत्याख्यान चौकड़ी के परमाणु रुपी है इसलिये खाना. लेना. देना इत्यादि व्यापार रूपी है, इस अपेक्षा से रुपी है (२) प्रमाद आश्रव को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? प्रमादं मेघ , विषय, कपाय, निन्द्रा, विकथा ये