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(१३२) प्रसिद्ध हैं। शुद्ध निष्कलंक जीव स्वरुप की अपेक्षा से अपना जीव भी दिखाई नहीं देता है। इस कारण से अरूपी है (१) अजीव को अरूपी कैसे कहा ? धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकागास्ति तथा काल ये चार द्रव्य अरूपी है । इस अपेक्षा से अरूपी कहा है । अजीव को रूपी किस अपेक्षा से कहा ? पुद्गलास्तिकाय रूपी है इस अपेक्षा से रूपी कहा (२) पुण्य को अरूपी किस न्याय से कहा ? अन्न पुण्य, जल पुण्य, इत्यादि देने के परिणाम शुद्ध अध्यवसाय अरूपी है। पुण्य की करणी भाव पुण्य है जो अरूपी है । इस अपेक्षा से पुण्य को अरूपी कहा । पुण्य को रूपी किस अपेक्षा से कहा ? पुण्य की बयालीस प्रकृति अनंत पुद्गल से उत्पन्न हुई है। इस अपेक्षा से पुण्य एवं पुण्य के फल को रूपी कहा है (३) पाप को अरूपी किस अपेक्षा से कहा ? जीव हिंसा के परिणाम, भूठ बोलने के परिणाम, कपाय योग इत्यादि अध्यवसाय अरूपी हैं । पाप की करणी भाव पाप वह अरूपी है। इस अपेक्षा से पाप को मरूपी कहा । पाप की बयासी (८२) प्रकृति अनंत प्रदेशी स्कन्ध है । इस अपेक्षा से पाप व पाप के फल को रूपी कहा । (४) आश्रय को अरूपी किस अपेक्षा से कहा ? आश्रय शुभाशुभ अध्यवसाय, छः भाव लेश्या रूप है। भात्र लेश्या अरूपी है । श्री ठाणांग सूत्र के दूसरे ठाणे में जीव