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(१३०) छुड़ाने वाला जीव, छोड़ना जीव का निज गुण, छोड़े कर्म, को, रोकने वाला जीव । कर्म क्षय करने वाला जीव, टूटने वाले कर्म ।
।। इति छठा प्रश्न द्वार समाप्तम् ।।
छ ७. प्रात्मा द्वार
१-जीव तत्त्व आत्मा है दसरा नहीं। २- अजीव __ तत्त्व आत्मा नहीं दूसरा है, ३-पुण्य, ४-पाप, ५-.आश्रव,
६ बंध ये चार तत्त्व इसी प्रकार जानें । ७ संवर, ८ निजेरा ९ मोक्ष ये तीन तत्त्व आत्मा है परन्तु दूसरे नहीं, यह तो मुख्य नय की अपेक्षा से कहा । अब औपचारिक नय में पुण्य, पाप, आश्रय, बंध ये चार तत्त्व आत्मा भी है । श्री भगवती सूत्र के बारहवें शतक के दसवें उद्देश्य में परमाणुओं को भी आत्मा कहा है । इस अपेक्षा से नौ तत्त्व को अपनी अपनी अपेक्षा से आत्मा ही कहते हैं तथा नौ पदार्थ आत्मा के आते हैं तथा नव तत्त्व का ज्ञान भी आत्मा है। वहां जीव द्रव्य आत्मा है। संवर, निर्जरा, मोक्ष -ये चारित्र आत्मा के भेद है, नौ तत्त्व का ज्ञान करना यह ज्ञान आत्मा है, उपयोग आत्मा है, श्रद्धा करना यह दर्शन आत्मा है; क्रिया करने की शक्ति का प्रयोग करना वीर्य आत्मा है । पुण्य, पाप, आश्रव, वन्ध ये कपाय आत्मा एवं योग आत्मा है।
॥ इति आत्मा द्वार समाप्तम् ।।