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सब कर्म प्रकृति के उदय से है । इस अपेक्षा से रूपी कहा है (३) काय आश्रव किस अपेक्षा से रुपी हैं ? चार कपाय अनंत पुद्गल से उत्पन्न हुए, वर्ण, गन्ध आदि संहित हैं इस अपेक्षा से रुपी है । (४) योग आश्रव को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? मन, वचन के योग चौस्पर्शी और काया का योग आठ स्पर्शी है, इस अपेक्षा से योग आश्रव को रुपी कहा । ( ५ ) प्राणातिपात आदि पांचों चौस्पर्शी है, पांच द्रव्य इन्द्रियां आठ स्पर्शी है, दो योग चौस्पर्शी है, एक योग आठ स्पर्शी है, भंडोपगरण तथा सूई कुसग्ग ये प्रत्यक्ष में रूपी दिखते हैं, इस अपेक्षा से बीम आश्रव को रुपी कहा हैं । संवर को अरुपी किस अपेक्षा से कहा ? संवर समकित व्रत, अप्रमाद, अकषाय, अयोगीपन ये सब जीव के निज गुण होने से अरुपी हैं, इम अपेक्षा से संवर को अरुपी कहा । संवर को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? क्योंकि संवरने से पुद्गल का उपशमन हुआ तथा पुद्गल रूपी है, इस अपेक्षा से संबर को रुपी कहा । निर्जरा को मरुपी किस अपेक्षा से कहा ? कर्मों को निर्जरे अतः आत्मा उज्जवल हुआ जो अरुपी है । इस अपेक्षा से अरुपी कहा-2 निर्जरा को रुपी किस अपेक्षा से कहा ? निर्जरे हुए कर्म पुद्गल रुपी है । "सुहुमाणं निज्जरा पोग्गला पन्नता " । इति वचनात् इस अपेक्षा से निर्जरा को रुपी कहा ।
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