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(१२१)
अव पुण्य पाप के बन्ध व उदय के भांगे कहते हैं । १- पुण्य अकेला चन्वता है तथा अकेला उदय आता है । २ - पुण्य अकेला बता है तथा पाप उदय आता है । ३ - पुण्य अकेला बांधे परन्तु उदय नहीं आवे ऐसे ही क्षय होवे । ४- पुण्य अकेला बांधे व मन पाप योग होवे |
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१- पाप बांधे तथा पाप उदय में आवे । २- पाप बांधे तथा पुण्य पाप दोनों उदय में आवे |
३ - पाप बांधे तथा वह क्षय हो जावे ।
४- पाप बांधे वह पुण्य रूप में परिणामे और पुण्य उदय आवे |
१- दोनों साथ ही बांधे व साथ ही भोगे । २ - दोनों साथ बांधे उसमें से पाप पहिले उदय आवे और पुण्य बाद में उदय आवे ।
३- दोनों साथ बांधे उसमें से पुण्य पहिले उदय आवे और पाप बाद में उदय आवे ।
४- दोनों साथ बांधे और दोनों ही क्षय हो जावे ।
१- एक बांधे तथा दो भोगे ।
२- दो बांधे तथा एक भोगे । ३ - एक ही बांधे और एक ही भोगे । ४- दो बांधे और दो भोगे ।