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मोक्ष तत्त्व का परिचय कहते हैं । मोक्ष के दो भेद १- द्रव्य मोक्ष तथा २ भाव मोक्ष । १- (मुक्ति) छूटना यह द्रव्य मोक्ष है । २- कर्म छूटने से जीव उजला होवे वह भाव मोक्ष है, मोक्ष जीव का निज गुण है, इसलिए द्रव्य से छूटना यह द्रव्य मोक्ष अशुभ भाव से छूटना यह भाव मोक्ष है अंशतः कर्म क्षय होवे वह निर्जरा है तथा सम्पूर्ण कर्म क्षय होवे वह मोक्ष है । किसी अपेक्षा से संसारी जीव को भी मोक्ष कह सकते हैं । श्री उत्तराध्ययन सूत्र के तेरहवें अध्याय में कहा है कि 'सव्वं सुचिन्नं सफलं नराणं, कढाण कम्माण न मोक्ख अस्थि' तथा श्री भवती सूत्र के पहले शतक के चौथे उद्देश्य में 'जेरइय सच्चा जाव वेता मोक्खो नत्थि, अवेत्ता तसावा झोसचा ' उचराध्ययन सूत्र में कर्म तोड़ने का उपाय निर्जरा बताया है और कर्म टूटने से आत्मा शुद्ध होती है, वही मोक्ष है । जैसे नाला (नहर) द्वारा पानी निकालकर अन्दर से रत्न निकाले. वैसे तालाब के समान जीव और आश्रव रुपी नाला रोकने से संवर, अरहर के समान निर्जरा, इस साधना से जितना तालाव खाली होता है, उतने ही कर्म से मोक्ष हुआ कहलाता है अर्थात् ज्ञान रुपी रत्न उतना ही समीप हुआ जैसे पानी का उलीचना वैसे निर्जरा । मस्तक का शुद्ध होना मोक्ष है 'तवसा या झोसता वा इति वचनात् '