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बंध है । ९ मोक्ष छः में कौनसा ? नौ में कौनसा ? छ में जीव द्रव्य का निज गुण और नौ मोक्ष तत्त्व है ।
नय की अपेक्षा से कहते हैं । पुण्य, पाप, आश्रव तथा बंध इन चार तत्त्व के भाव जीव के अध्यवसाय है । द्रव्य की अपेक्षा कर्म पुद्गल है । इस अपेक्षा से छ: में जीव को पुद्गल कहते हैं और न तत्त्व में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव तथा बंध कहते हैं ! एक अपेक्षा से शुभ योग को भी निर्जरा कहते हैं एक अपेक्षा संवर भी कहते हैं और मोक्ष भी होता है। ऐसे भाव पुण्य निर्जरा की करणी से होता है, इसलिए निर्जरा भी कहते हैं, परन्तु मुख्य नय में पुण्य पाप आश्रव, बंध ये चार जीव को अशुद्ध करने का स्वभाव है ।
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जीव को संसार में भ्रमण कराने के हेतु हैं इसलिए इन्हें जीव के निज गुण नहीं कहते हैं ये तो कर्म के गुण अतः जीव तत्त्व में नहीं है तथा संवर, निर्जरा तथा मोक्ष इन तीनों का जीव को शुद्ध करने का स्वभाव है, संसार घटाने का उपाय है, इम अपेक्षा से ये जीव के निज गुण है, अतएव 'एवं भृत' नय की अपेक्षा जीन के गुण को जीव कहते हैं, इस अपेक्षा छ: में जीव कहें। नहीं, यह भी व्यवहार है. निश्चय लक्षण दो हैं, श्री उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाइस अध्याय में कहा है कि
दोप