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(१२५) खुरसाण के समान निर्जरा खडग का निर्मल होना वह मास है । यदि ऐसा नहीं माने तो केवली के कितने कर्मों का बंध ? तथा कितने का मोक्ष ? यदि चार कर्म का मोक्ष कहें तब भी उद्देश्य मोक्ष ही है। यह प्रकृति की अपना भी मोक्ष है । एक प्रकृति के उत्तर परमाणु खिसकने से भी होगा, तथा कर्म क्षय करके सिद्ध होते हैं उन्हें भी अपेक्षा से मोक्ष कहते हैं इसलिए श्री नवतत्व प्रकरण ग्रंथ में तो मोक्ष सिद्ध को ही कहा है, तथा श्री उत्तराध्ययन स्त्र के वीसर्व अध्ययन में मोक्ष के चार मार्ग कहे हैं, १ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र, ४ तप, यहां ज्ञान के दो मद-- १ द्रव्य ज्ञान, २ भाव ज्ञान । द्रव्य ज्ञान-जान अजान, उपयोगवंत तथा पत्र लिखा हुआ, पुस्तक तथा जाणग शरीर, भव्य शरीर और मिथ्यात्वी का पढ़ना, गुनना, यह द्रव्य ज्ञान है और समकित दृष्टि का पढ़ना, गुनना, जानपना, यह भाव ज्ञान है। ऐसे ही दर्शन चारित्र तथा तप जाने, ये चार भेद मोक्ष के हैं, उसमें मिथ्यात्वी को देश से व्यवहार नय की अपेक्षा मोक्ष है, परन्तु निश्चय नय की अपेक्षा मोक्ष नहीं समकित दृष्टि को व्यवहार निश्चय दोनों नय की अपेक्षा मोक्ष है । इस प्रकार मोक्ष तत्व का परिचय कहा है।
॥ इति पांचवां परिचय द्वार समाप्तम् ।।