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(१२७) वेध हैं। ९ मोक्ष छः में कौनमा ? नो में कौनसा ? का में जीव द्रव्य का निज गुण और नौ मोक्ष तत्त्व है । __नय की अपेक्षा से कहते हैं। पण्य, पाप, आश्रव तथा बंध इन चार तत्त्व के भाव जीव के अध्यवसाय है । द्रव्य की अपेक्षा कर्म पद्गल है। इस अपेक्षा से छः में जाव को पुद्गल कहते हैं और नौ तत्त्व में जीव, अजीव ; पुण्य, पाप, आश्रव तथा बंध कहते हैं ! एक अपेक्षा से उन योग को भी निर्जरा कहते हैं एक अपेक्षा संवर भी कहते हैं और मोक्ष भी होता है। ऐसे भाव पुण्य निर्जरा को करणी से होता है, इसलिए निर्जरा भी कहते हैं, परन्तु मुख्य नय में पुण्य पाप आश्व, बंध ये चार जीव को अशुद्ध करने का स्वभाव है ।
जीव को संसार में भ्रमण कराने के हेतु हैं इसलिए इन्हें जीव के निज गुण नहीं कहते हैं ये तो कम के गुण है अतः जीव तत्त्व में नहीं है तथा संवर, निर्जरा तथा मोक्ष इन तीनों का जीव को शुद्ध करने का स्वभाव है, संसार घटाने का उपाय है, इस अपेक्षा से ये जीव के निज गुण है, अतएव 'एवं भृत' नय की अपेक्षा जीर के गुण को जीव कहते हैं, इस अपेक्षा छः में जीव कहें तो दोष नहीं, यह भी व्यवहार है, निश्चय लक्षण दो हैं. श्री उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाइसवें अध्याय में कहा है कि