________________
(११४) भाव से पाप नहीं करते हैं इसलिए अधिक बंध नहीं होता परन्तु पाप कार्य में भाव नहीं रखे तभी १५ भव का वर्णन है, क्योंकि समकिन प्राप्त करने के वाद मिथ्यात्व की करणी कर पाप कर्म नहीं करता है इसलिए समय समय पर कर्म हल्के होते हैं, समय समय पर कर्म बंधते भी हैं, निर्जरा भी होती है, परन्तु बंध अल्प है, निर्जरा अधिक है किसी करणी से अधिक बंध होते हैं, किसी करणी से अधिक निर्जरा होती है, परन्तु निर्जरा की अपेक्षा बंध अल्प होते हैं, इसलिए शुद्ध होकर मुक्ति पाता है, मिथ्यात्वी के समय समय पर कर्म बंधते हैं तथा समय समय पर टूटते हैं पर किसी अवस्था में अधिक बंधते हैं और अल्प टूटते हैं इसलिए भारी होते हैं और इकेन्द्रियादि जाति में या नक आदि गति में उत्पन्न होते हैं, किसी समय अल्प बंधते हैं तथा अधिक निर्जरते हैं जिससे तुंबड़ी के समान हल्का होकर उत्कृष्ट नव ग्रेवेयक तक उत्पन्न होते हैं परन्तु निश्चय में मुक्ति का मार्ग नहीं है । संसार में सुख दुख दोनों पाते है शुभ क्रिया का फल मीठा है उन्हें भोगे । मिय्यादृष्टि की अपेक्षा समकित दृष्टि निश्चय में अधिक है, यदि कोई मिथ्यात्वी, वाल तपस्त्री तथा निन्हवादी अल्पमिथ्यात्वी आरम्भ, परिग्रह रहित, अप्रमच कषाय का उपशमन कर शुभ योग शुभ ध्यान में वर्तने वाला शुल्क