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कहा है इसलिए घड़ा का कर्ता घड़ा है ऐसे ही जीव को भी कर्म कहते हैं इसलिए कर्म का कर्ता कर्म है पर जीव नहीं ।
बंध के चार भेद कहते हैं - ( १ ) प्रकृति बन्ध (२) स्थिति बन्ध (३) अनुभाग बन्ध तथा (४) प्रदेश बन्ध इनका अर्थ जानने के लिए मोदक का दृष्टान्त कहते हैं । जैसे कोई लडता है, कोई पित का शमन करता है कोई श्लेश्म का शमन करता है कोई धातु की वृद्धि करता है, इसी तरह कोई प्रकृति ज्ञान का आवरण करती है, कोई दर्शन का आवरण करती है, कोई चरित्र का आवरण करती है, कोई सुख देती है, कोई दुख देती है, उसे प्रकृति बन्ध कहते हैं । १
जैसे किसी मोदक (लड्ड ू) की स्थिति पन्द्रह दिन की किसी की एक मास की तत्पश्चात् विनाश हो जाता है वैसे ही किसी प्रकृति की बीस क्रोडा क्रोड़ी सागर की स्थिति किसी की तीस कोड़ा क्रोड़ी सागर की स्थिति किसी की ७० कोड़ाकोड़ सागर की स्थिति होती है इतने समयपरमाणु सचा में रहे फिर नाश हो जावे उसे स्थिति बन्ध कहते हैं |२
जैसे कोई लड्ड, चार गुणी शकर के रस में बनते हैं कोई तिगुनी, कोई दुगुनी तो कोई बराबर शक्कर में बनते हैं इसी प्रकार कोई प्रकृति चौठाण वड़िया रस में कोई