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(११३) कि हे स्वामी ! पहिले करें तथा बाद में जीव यह बात मिलती है या नहीं ? गुरुजी ने फर्माया कि हे शिष्य ! यह बात नहीं मिलती है । तब शिष्य ने कहा यह बात कैसे नहीं मिलती ? उत्तर-जीव विना कर्म किसने किया? इस कारण से उपर्यत बात नहीं मिलती है। (१) फिर शिष्य ने पूछा कि हे स्वामिन् ! पहले जीव तथा बाद में कर्म यह बात मिलती है कि नहीं ? गुरुजी ने कहा, यह बात भी नहीं मिलती, शिष्य ने कहा यह वात क्यों नहीं मिलनी ? गुरुजी ने कहा यदि पहिले जीव कर्म रहित है तो नये कर्म लगते हैं ऐमा मानना होगा और जव जीव के नये क लोंगे तो अजीव को भी लगेंगे, सिद्ध को भी लगेंगे जो कदापि सम्भव नहीं है। इसलिए यह बात नहीं मिलती है । (२) शिष्य ने पूछा कि हे स्वामिन् ! जीव तथा कर्म दोनों साथ ही उत्पन्न हुए यह बात मिलती है कि नहीं ? गुरुजी ने फरमाया कि यह भी नहीं मिलती है। प्रश्न क्यों नहीं मिलती ? उत्तर- ऐसा करने से जीव तथा कर्म दोनों की आदि होगी नये उत्पन्न हुए मानना होगा, यदि जीव नये उत्पन्न होंगे तो संसार में नहीं समायेंगे इसलिए नहीं मिलती है । (३) प्रश्न-हे स्वामिन् ! जीव कर्म रहित है यह वान मिलती है कि नहीं ? उत्तरनहीं मिलती । प्रश्न-क्यों नहीं मिलती ? उत्तर- यदि