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को बचाने वाले के परिणाम कठोर है या कोमल ? यदि परिणाम कोमलता के हैं और उत्तम लेश्या युक्त अनुकम्पा होगी तो पुण्य ही होगा, तथा साधु को छः काया का पिहर कहा है, छः काया के जीव साधु के लिए पुत्र पुत्री समान है तो फिर जो अपने पुत्र पुत्री को हने हनावे दूसरा हनन करता हो उसे मना नहीं करे, दूसरा कोई मना करता हो उसे भला नहीं जाने बल्कि बुरा किया जाने तो फिर उसको पिता कहें या बैरी कहें ? उन्हें तो भूत जानें तथा साधु बनकर छः काया के जीवों का हनन करते मना नहीं करे और जो मना करे उसे कर्म किया जाने उसे छः काया का पिता नहीं माने, उसे तो छः काया का बैरी कहें । ऐसी श्रद्धा वालों में समकित तथा चारित्र के लक्षण नहीं होते हैं, क्योंकि समकित के लक्षण में तो अनुकम्पा है, अतः अनुकम्पा बिना समकित कैसे रहे !' श्री भगवती सूत्र के पन्द्रहवें शतक में भगवान ने गोशाला को अनुकंपा के निमित्त ही बचाया, उसे एकां पाप कैसे कहते हैं ? फिर भगवंत ने केवल ज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् गोतम स्वामी से कहा " हे गोतम ! मैंने अनुकम्पा निर्मिच, दया निमित्त गोशाला को बचाया ऐसा कहा है, परन्तु मैंने मोह किया, पाप किया अथवा मैंने भूल की ऐसा नहीं कहा ! तो क्या भगवान ने स्वयं का दोष छिपाया : नहीं,
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