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(११०) हैं, परन्तु काय योग की आज्ञा नहीं दे, उसका क्या कारण है ? उसका उत्तर है कि मन वचन ( यहां मूल पुस्तक में काया के योग को भी चौस्पर्शी में लिया है जो भगवतीमूत्र शतक १२ उद्देश्य ५ के पाठ से विपरीत है। इसलिए यहां से काम योग को हटा दिया है ) का योग चौस्पर्शी है, इसलिए नई हिंसा नहीं होती तथा काया का योग आठ स्पर्शी है. इसलिए किसी समय अयत्ना का स्थान है, इसलिए साधु गृहस्थी को प्रवत्ति भाव में दो योग की आज्ञा देते हैं, परन्तु साधु गृहस्थी को काय योग की आज्ञा नहीं देते तथा संभोगी को देते हैं परन्तु संवर वह धर्म है । इस प्रकार संवर तत्व का परिचय हुआ ।
निर्जरा तत्त्व का परिचय कराते हैं, इसमें दो योग की आज्ञा दी है, काय योग की आज्ञा साधु को क्षय किये हुए पद्गल विपाक से तथा प्रदेश से उदय आने पर वेदना भोगकर स्थिति पूर्ण कर क्षय किये तथा १२ भेदी तपस्या से क्षय किये कर्मों के पुद्गल निर्जर निर्जरे ऐसे पुद्गलों को द्रव्य निर्जरा कहते हैं तथा जिन पुद्गलों के निर्जरने से अर्थात् क्षय करने से जीव उजला हुआ तथा वीर्यान्तराय के क्षयोपक्षम से तपस्या आदि का करना भाव निर्जरा है परन्तु वास्तव में तो निर्जरा का जीव को शुद्ध करने का स्वभाव है, इस कारण जीव का गुण जानना । क्योंकि