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(१०७) श्री भगवती सूत्र के बारहवें शतक में शंख पुष्कली को क्रोध करते समय भगवन्त ने क्यों मना किया ? परन्तु क्रोध करना पाप है इसलिये पाप करते मना किया। जब क्रोध करते समय मना किया तो हिंसा करते हुए को मना करे तो इसमें क्या दोष है ? तथा श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र के दूसरे श्रुनस्कन्ध के पहले अध्याय कहा है कि सब जगत के जीवों की रक्षा हेतु भगवन्त ने शास्त्र प्ररूपित किये हैं। तो संसार के जीव तो स्वयं अपने अपने कर्मों करके पचते थे, भगवन्त को कोनसा पाप लगता था ? परन्तु उन्होंने धर्म की वृद्धि हेतु उपकार किया है। इसलिए दूसरे भी बचाते हैं तो उपकार के निमित्त ही बवाते हैं ।
फिर श्री शांतिनाथ भगवान चरित्र में मेघरथ राजा ने कबूतर की रक्षा की, पार्श्वनाथ भगवान ने जलते हुए नाग नागिन को बचाया, मदन रेखा और पद्मावती ने राजाओं के झगड़े मिटाये ऐसे अनेक स्थानों पर दया का अधिकार पढ़ने को मिलता है, कोई कहे कि साधु उपदेश ११ कि जीव मारने का कड़वा फल है परन्तु आज्ञा नहीं देवे' उसका उत्तर है कि श्री उत्तराध्ययन सूत्र के १३वें अध्याय में चित्त मुनि ने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को आदेश किस प्रकार दिया कि अज्जाई कम्मा करेहि रायं' हे राजन् ! जो तूं भोग नहीं छोड़ता है तो आर्य कर्म कर । मद्य मांसादि का