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फिर श्री सूयगडांग सूत्र के दूसरे स्कन्ध के सातवें अध्याय में कहा है कि गोतम स्वामी ने उदक पेढ़ाल पुत्र को कहा कि चारित्रवानों स्वयं गुणवान होते हुये भी यथोक्त श्रमण माहण की निंदा करते हैं. उन्हें परलोक में संयम का विराधक कहा, तथा जो यथोक्त श्रमण के साथ मित्र भाव रखते हैं उनके ज्ञानादि गुण सफल कहे गये हैं, वे आराधक होते हैं । इसलिये सब साधुओं के साथ मित्र भावना रखना चाहिये तथा श्री उत्तराध्ययन सूत्र ग्यारहवें अध्याय में चौदह वोल अविनीत के एवं पन्द्रह बोल विनीत के बताये हैं, यदि कोई संयम में दोष लगायेगा तो उसे ही मुश्किल होगी, परन्तु दूसरे उसकी अनुमोदना नहीं करे तो उसे दोष नहीं, फिर नीचे स्वप्न में तीन दिशाओं में समुद्र सूखा दिखाई दिया और दक्षिण दिशा में कुछ गन्दा पानी दिखाई दिया, इसके प्रभाव से तीन दिशाओं में धर्म की हानि है, तथा दक्षिण व पश्चिम में थोड़ा बहुत धर्म है वह भी कषाय युक्त तथा अनेक मतों के कारण गुदला अर्थात् गंदा होगा । जैसे अटवी में ज्येष्ठ के महीने में प्यास से पीड़ित व्यक्ति ने गंदा पानी पीकर प्यास शांत की वह अटवी उलांघ कर पार पहुॅचा एवं सुख प्राप्त किया तथा आगे निर्मल जल भी मिला,
और जिन्होंने गंदे जल से तृषा शान्त नहीं की वे मरण