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अपेक्षा से है, स्थविर कल्पी इन चारों का कैसे सेवन करते हैं १ १ किवाड़ खोलना व बन्द करना २ धर्म कथा करना ३ तृण लेना ४ पूप निकालना | श्री वृहत्कल्प सूत्र में साध्वी को खुले स्थान में रहना नहीं कल्पता, परन्तु साधु को मना नहीं किया, तथा श्री सूयगडांग सूत्र में भी कहा है, तथा कोई कहे कि तुम किवाड़ बन्द करते हो तो फिर गृहस्थी किवाड़ खोलकर असनादि देवे तो क्यों नहीं लेते ? उन्हें कहें कि साध्धी स्वयं किवाड़ बन्द करे एवं खोले फिर वह आहार क्यों नहीं लेती १ फिर केवल किवाड़ बन्द करने मात्र से महात्रत भंग होता है तो साध्वी के चार महाव्रत तो नहीं फिर वे कैसे बन्द करती है ? तब वे कहते हैं कि साध्वी को तो शील की रक्षा के लिये किवाड़ बन्द करना कहा है, यदि ऐसा है तो क्या चौथा व्रत रखने के लिये पहला व्रत भंग करना ? ऐसे किंवाड़ बन्द करने से व्रत भंग होता है तो किवाड़ बन्द करने वाले को नई दीक्षा दिये बिना आहार शामिल करे उसमें साधुपना श्रद्धे उन्हें सम्यकदृष्टि नहीं कहते, तथा ओ किवाड़ बन्द करने से महाव्रत भंग होता है तो किवाड़िया में कैसे नहीं भंग होगा ९ हिंसा के स्थान तो दोनों ही है । जैसे कोई जानकर सर्प मारे तथा कोई आकुट्टी से कीड़ी मारे तो इन दोनों के व्रत भंग होंगे कि नहीं ? फिर श्री आचारांग
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