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(८२) नाम के आचार्य ने निशीथ सूत्र लिखा है ऐसा कहा, गुण के विधान ज्ञानादि सहित ऐसे आचार्य लिखे तो दूसरे साधु की क्या विशेषता ? और लिखना धर्म की वृद्धि हेतु है, परन्तु परिग्रह के लिए नहीं लिखते फिर श्री दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्याय में पृथ्वी पर लिखने का निषेध किया है, परन्तु दूसरे पर लिखने का निषेध नहीं किया तथा जो महान बुद्धिमान होते हैं वे पत्र किमलिये रखें ? ये तो अल्प वुद्धि वाले जीवों के लिये हैं, जिन्हें शास्त्र के विना ज्ञान नहीं होता अतः उनके लिए अपवाद रूप में लिखने में दोष नहीं। तथा श्री आचारंग सूत्र के सातवें अध्याय में कहा है कि क्षमा श्रमण देवर्द्धिगणि ने शास्त्र लिखे हैं तो फिर दूसरों के लिए निषेध क्यों ?
तथा कोई कहे कि साधु चश्मा क्यों रखते हैं ? उन्हें ऐसा कहे कि चश्मे का किस स्थान पर निषेध किया है ? सूत्र में तो कांच के पात्रों का निषेध है, वस्त्र के, चर्म के, सित्तर जाति के पात्रों का निषेध किया है, परन्तु वस्त्र कांच व चर्म रखने में वाधा नहीं। कोई कहे कि कांच के पात्र कैसे होते हैं ? कांच का ही निषेध किया है इसके उचर में प्रतिप्रश्न होता है कि वस्त्रों के पात्र कैसे होते है ? वस्त्र क्यों रखते हैं ? कोई कहे कि कांच का मूल्य होता है धातु है तो क्या वस्त्र; पात्र, पुस्तक आदि का