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में स्थान स्थान पर अलग २ गच्छ कहे हैं. इसलिए एक रखें, बहुत से गच्छों के
ही गच्च हो ऐसा आग्रह नहीं साधु साध्वी गुणवंत होते है, कई जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट है, परन्तु उनमें गुणवान है एक गच्छ के आधार पर जैन शासन का चलना अशक्य है । अनेक साधुओं का विश्वास रखने वाला सुखी होगा, एकान्त पक्ष खेचने वाले को दुष्मन व्रत जानना तथा कोई कहे कि साधु संभोग करे तो बाहर संभोग करे अन्यथा एक भी नहीं करे ऐसा कहना भी सिद्धान्त के अनुकूल नहीं है । क्योंकि श्री आचागंग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्थ के सातवें अध्याय में कहा है कि संभोगी साधु आवे उन्हें असनादि का आमंत्रण देवे तथा विमंभोगी आवे उन्हें पाट पाटले बाजोट आदि देवे, फिर श्री उत्तराध्ययन सूत्र के तेवीमवें अध्याय मे केशीकुमार ने भी गोतम स्वामी को घास आदि का आमन्त्रण दिया था इत्यादि कारणों को ध्यान में रखते हुए सबके साथ सब संभोग रखना आवश्यक नहीं अपितु जितने संभोगों की अनुकूलता हो उतने ही संभोग करे, एक हो यावत सभी उत्कृष्ट संभोग कर सकते हैं तथा कोई कहे कि साधु तो एक पात्र रखे जिसके उत्तर में कहना है कि सूत्र में तो पात्रा शब्द का उल्लेख है जो जातिवाचक है तथा श्री आचारांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के