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अवस्था
घट्ट अध्याय में कहा है कि जो निर्ग्रन्थ तरुण, वाला तीसरे चौथे आरे में जन्मा हुआ महा संघयणवंत हो वह एक पात्र रखे ऐसे ही वस्त्र भी एक रखे यह उत्सर्ग मार्ग का पाठ है किन्तु दूसरे तीन पक्छेवड़ी रखे तो फिर तीन पात्र क्यों नहीं रखे १ फिर श्री व्यवहार सूत्र के दूसरे उद्देश्य में तीन पात्र कहा है इसलिये तीन पात्र रखते हैं फिर उबवाइ, ठाणांग तथा भगवती सूत्र में एक वस्त्र, एक पात्र रखे तो अधिक तप कहा है, परन्तु तीन रखे तो दोष नहीं । तथा अभी काल के प्रभाव से संघयण के मंद पने से कर्म की गुरुता से वक्र जड़ता से अतिचार अधिक लगते जान पड़ते हैं, इससे कई एक निर्बुद्धि जीवों को साधु दिखाई नहीं पड़ते, वे कहते हैं कि यदि साधु हो तो इतने दोषों का कैसे सेवन करे ? जिसका उत्तर सूत्र में पांच चरित्र एवं छः निर्ग्रन्थ कहे हैं । साधु साधु अनन्त भाग हीन इत्यादि विकल्प कैसे कहा है ? फिर श्री ठाणांग सूत्र में चार प्रव्रज्या कही 'धन संघहीय समाणा' इत्यादि अतिचार रुप कचरे युक्त प्रव्रज्या कही फिर बकुश चरित्र शरीर, उपकरण विभूषा के करने से शुद्ध तथा अशुद्ध मिश्र चरित्र कहा है ।
फिर छेदोपस्थापनिक चारित्र अर्थात् महावीर स्वामी के साधुओं का सातिचार (अतिचार सहित ) चारित्र होता