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चरित्र, कथा इत्यादि जो जो भी सिद्धान्त से मिलते हों उनका वाचन करने कविता में जोडने, कहने अथवा गाने में आपति नहीं जो सिद्धान्त से विरुद्ध हो उन्हें साधु को नहीं कहना चाहिये न ही जोडना चाहिये और न उन्हें सुनना चाहिये इसलिए कविता करने का निषेध नहीं करे ।
फिर चित्रों की अपेक्षा पूछे तो जिन चित्रों को देखने से राग उत्पन्न हो उन्हें साधु नहीं देखे न उनके चित्र बनावें, न दिखावें जिनको देखने से ज्ञान बढ़े तथा वैराग्य उत्पन्न हो उन चित्रों को दिखाने में दोष नहीं फिर श्री नन्दी सूत्र में कहा है कि 'उपयोगवंत श्रुत ज्ञानी' सब द्रव्य जाने देखे वहां अर्थ का ऐसे विस्तार किया है कि स्वर्ग नरक आदि आकार भेद गुरु ने शात्र करके
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जाना उस आकार का चित्रण करके गुरु नरक तथा देव विमानादि दिखावे तथा देखा हुआ ही कहे ऐसे भाव देखते हुए तो चित्रकला में बाधा नहीं लगती है किन्तु जिनके देखने से विकार उत्पन्न हो वैसे स्त्री प्रमुख के विलासकारी चित्र नहीं दिखावें ।
लिखने के लिए पूछे तो श्री प्रश्नव्याकरण के सातवें अर्थ में "जह भणियं तहय कम्मुणा होई" जिस प्रकार सत्य पढ़े उसी प्रकार लिखने आदि की क्रिया भी सत्य ही करे । फिर श्री निशीथ सूत्र के बीसवें उद्देश्य में विशाखा
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