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(८०) में सूत्र के न्याय से क्या बाधा है ? तथा श्री नंदीसूत्र में व्याकरण, भागवत, पुराणादि मिथ्यात्वियों के शास्त्र कहे हैं उन्हें सम्यग्दृष्टि पढ़े तो धर्म शास्त्र कहा फिर श्री ठाणांग सूत्र के नवमें ठाणे में ज्योतिष विद्या पाप शास्त्र है उसे साधु पुष्ट कारण से पढ़े तो धर्म शास्त्र है इस न्याय से फिर जो ऐसा कहे कि साधु को व्याकरण नहीं पढ़ना ऐसे बोलने वाले एकान्त दुर्नय वाले हैं तथा कोई ऐसा कहे कि जो शब्द शास्त्र पढ़े विना उपदेश देते हैं बे ज्ञानावरणी कर्म का उपार्जन करते हैं और उसके श्रोता दर्शनावरणीय कर्म का उपार्जन करते हैं जो ऐसा कहते हैं उन्हें भी शास्त्र के विडंबक जानना । क्योंकि भगवान की वाणी तो अर्धमागधी भाषा में है, संस्कृत भाषा तो पीछे के आचार्यों की रचना है और व्याकरण आदि के सब कौन ज्ञाता होते हैं, पढ़े हैं ? इनके तो कोई एक ज्ञाता होते हैं, तो क्या सब कम उपार्जक है ? यह बात उपयुक्त नहीं लगती है । परन्तु पढ़ने में दोष नहीं और यदि नहीं पढ़े तो कोई बाधा नहीं।
फिर श्री ठाणांग सूत्र में तथा अनुयोग द्वार सूत्र में ऋषिश्वर को प्रशस्त गाने का का कहां है। चार प्रकार की काया में गाना कहा है इसलिये स्वाध्याय, स्तवन, श्लोक, दृष्टान्त, काव्य, प्रस्ताविक, सवैया, छन्द, चौपाई,