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परभव से डरेंगे. वे तो न्यूनता को हटाने का उपाय करेंगे, साधु स्वयं भोले अर्थात् नासमझ नहीं है जो बिना ही कारण न्यूनता का सेवन करेगा ( यदि कोई आचार में न्यूनता करेगा) तो उसे मुश्किल होगी ।
ग्राम में उतरने की अपेक्षा पूछे तो श्री भगवती सूत्र के पन्द्रहवें शतक में भगवंत श्री महावीर स्वामी ने राजगृही नगरी के नालन्दा पाड़ा में चौमासे किये उन्होंने कैसे चातुर्मास किये ? फिर श्री उपासकदशांग सूत्र में शकडाल को प्रतिबोधित करने के लिए पोलासपुर में कैसे उतरे १ तथा श्री रायप्पसेणी सूत्र में केशीकुमार ने कहा चार प्रकार से धर्म प्राप्त नहीं होता एवं चार प्रकार से धर्म प्राप्त होता है । उपवन में साधु उतरे हुए हों और उन्हें वन्दना करने न जावे, ग्राम में उपाश्रय में उतरे घर आया एवं मार्ग में मिलने पर वन्दना न करे तो धर्म प्राप्त नहीं होता और इन चारों जगह वन्दनादि सत्कार करने से धर्म प्राप्त होता है फिर श्री वृहत्कल्प सूत्र में कहा है कि यदि उपाश्रय में धान, घी, गुड़, तेल, दूध, दही, मक्खन इत्यादि बिखरे हुए हो तो वहां नहीं रहना तथा ऊंचे हो या बन्द किये हुए हो वहां रहना ग्राम में रहने का कहां निषेध है ? यह दिखाओ ? यहां कोई कहे कि पहिले साधु बाग में कैसे उतरते थे ? उन्हें यों कहे कि बाग में