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श्रावक को वन्दन करना पाप नहीं है । फिर अंबडजी के शिष्यों ने अंबड़जी को वन्दना क्यों करी । सूत्र में स्थान स्थान पर स्वधर्मी का विनय करना कहा है । चतुर्विध संघ के विनय में बहुत गुण फरमाये हैं, इसलिये विनय का निषेध नहीं करें । श्रावक तो बड़ी बात है पर सूत्र में तो
देवता, मनुष्य तथा तिर्यञ्च इन तीनों के विनय करने में __ भी बहुत सुख कहा है, तथा जो माता पिता का विनय
करे तो चवदह हजार वर्ष के आयुष्य वाले देवता में उत्पन्न होवे इसलिये विनितपन का जितना प्रभाव हो उतने सब जीवों के गुण है और सब जीवों के समय समय पर पुण्य का बन्ध होता है, एवं पुण्य की करणी तो नौ प्रकार की है इस कारण जितने देने के, विनय के तथा अनुमोदन के गुण व शुभ परिणाम इन सबसे निश्चय पुण्य बंधता है। मिथ्यात्व की करणी करते हुए भी पुण्य का मिश्रण है। पंचाग्नि साधन करने में हिंसा होती है वह पाप है, परन्तु काया क्लेश तो अकाम निर्जरा एवं पुण्य होता है, तथा बारहवें अतिथि संविभाग व्रत में अहंकार भाव से दान देवे उसे अतिचार कहा है, वहां दो स्वरुप है, तथा श्री भगवती सूत्र के सातवें शतक के दशवे उद्देश्य में कहा है कि आग वुझावे (होलवे) वह अल्प कर्मी तथा आग लगावे वह भारी कर्मी इस कारण जीव रक्षा के भाव में पुण्य प्रकृति का