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उसका दान भी १५वे कर्मादान में है सातवें अधर्म दान में है। ___ जो श्रावक को नमस्कार करे वह भी इसी प्रकार है । ये ९
पुण्य समान हैं । तथा कोई इस प्रकार कहे कि नमस्कार तो पंच पदों को ही करना चाहिये शेष नमस्कार मिथ्यात्वी की करणी है, अतः श्रावक को नमस्कार किस प्रकार करें ।
उसका उत्तर है कि एक अपेक्षा से श्रावक पांच पद में है क्योंकि साधु सर्व की अपेक्षा से २७ गुण धारी हैं, तथा देश अपेक्षा से २७ गुण श्रावक में भी मिलते हैं इस कारण गुण की अपेक्षा से पांच पद में है, और यदि श्रावक के विनय में पुण्य हो तो साधु क्यों नहीं करे? तब कहे कि आर्या को क्यों नहीं करे ? ऐसे प्रश्नकर्ता को ऐसा कहे कि साध्वी को सदा भाव से वन्दना करते हैं,परन्तु छोटे बड़े का व्यवहार रखने हेतु द्रव्य से वन्दन न करे,परन्तु श्रावक को तो भाव से वन्दना नहीं करे इसलिये पुण्य नहीं कहना चाहिये, यदि श्रावक के विनय में पाप हो तो भगवान ने श्रावक का विनय मूल धर्म कैसे कहा ? फिर श्री भगवती सूत्र में उत्पला श्राविकाने पुष्कली श्रावक को वन्दना क्यों की ? फिर भगवान के मुख के सामने शंखजी पर क्रोध करते हुए भगवान ने मना किया, पाप जानकर निषेध किया । इसलिए यदि वन्दना करने में पाप होता तो मना क्यों नहीं किया, पाप करते हुए को रोके तो यह साधु का आचार है, इस कारण से