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चाहिये अठारह पाप स्थान के नाम तथा अर्थ प्रसिद्ध है, वे ग्रंथ भार भयान्नास्मोमिः लिख्यते' इति पाप तत्व का परिचय ।
आश्रव तत्व का परिचय-आश्रव के दो भेद-१ द्रव्य आश्रय तथा २ भाव आश्रव । इनमें द्रव्य आश्रव किसे कहते हैं ? पूर्व में जीव ने मिथ्यात्व मोहनीय आदि मोहनी कर्म की छब्बीस प्रकृति बांधी है उनको द्रव्य आश्रव कहते हैं । इन प्रकृतियों के प्रयोग से जीव के अध्यवसाय उत्पन्न हो वे भाव आश्रव कहलाते हैं। उन भाव आश्रव के योग से नये शुभाशुभ कर्म आते हैं उन आते हुए कर्मों को श्री उबवाई सूत्र तथा प्रश्न व्याकरण सूत्र में द्रव्य आश्रव कहा है । यहां कोई कहे कि द्रव्य मिथ्यात्व, द्रव्य योग अजीव पुदगल है परन्तु आश्रव नहीं, यह बात विरुद्ध लगती है, यदि द्रव्य आश्रव नहीं गिनते तो योग आश्रव किस प्रकार कहते हो ? मिथ्यात्व आश्रव किस प्रकार कहते हो भाव मिथ्यात्व क्यों नहीं कहते हो ? यदि योग आश्रय कहते हो तो द्रव्य योग आश्रव होगा या भाव योग आश्रव १ तथा कोई कहे कि दव्य आश्रव है पर गिना नहीं जाता । उन्हें यों कहे कि यदि द्रव्य आश्रय है तो क्यों नहीं गिना जाता १ तथा कोई कहे कि "द्रव्य भाव माश्रव तो है परन्तु आते हुए कर्म वे आश्रव नहीं, यहां