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___बंध कहा है तो भी दो रुप प्रत्यक्ष ही जाने जाने हैं तथा
निश्चय नय से श्री अनुयोग द्वार सूत्र में संसारी विनय में अप्रशस्त पन कहा है. इसलिए एकान्त पक्ष नहीं लेना चाहिये । यह नौ प्रकार के पुण्य का परिचय कहा है।
पाप तत्व का परिचयः--यहां पाप के दो भेद१ द्रव्य पाप तथा २ भाव पाप । दोनों का परिचय पहिले जिम जीव के मोहनी कर्म की छब्बीस प्रकृति वांधी हुई सत्ता में थी उनके उदय में आने पर पाप करने की मति उत्पन्न होती है, इसलिए कर्म के उदय से पाप के परिणाम उत्पन्न होते हैं उस कर्म को द्रव्य पाप कहते हैं। यह चौस्पर्शी पुद्गल है। इसके उदय से जीव के जो हिंसा करने तथा भूठ बोलने इत्यादि अशुभ परिणाम उत्पन्न हुए वे अशुभ अध्यवसाय से भाव पाप कहे जाते हैं। वे अरुपी है । इस परिणाम से जो जीव हिसादि क्रिया करे वे क्रिया के योग प्रवर्तने की अपेक्षा से द्रव्य पाप कहे जाते हैं, आरम्भ में अष्ठस्पर्शी है वह भी एक अपेक्षा से पाप कहा जाता है, क्रिया करने से जो सात आठ कर्म के अशुभ वर्णादि सहित अनन्त प्रदेशी स्कंध जीव के आकर लगते हैं, वे पुद्गल चौस्पर्शी है उन्हें भी द्रव्य पाप कहा जाता है । जिस प्रकृति के उदय आने से जीव को नीच गोत्र, धन धान्य, नाश, दुख दारिद्र अशाता उत्पन्न होवे वे पाप के फल हैं।