________________
नहीं आगम पाठों के अनुसार साधु का आहार संयम साधना का आधार भूत सिद्ध है परन्तु आश्रव में है।
फिर श्री भगवती सूत्र के पहले शतक के तीसरे उद्देश्य में तेरह अंतराओ में कहा है | साधु पोरिसी प्रमुख प्रत्याख्यान करे, वह प्रमाद रोकने के लिये है, जो उचित है इस प्रकार छठे गुणस्थान में आहार के पच्चक्खाण होते हैं वे प्रमाद रोकने के लिये हैं आगे पच्चक्खाण नहीं करते ऐसे ही साधु के उपकरण रजोहरण, वस्त्र, पात्र, मुहपति प्रमुख भी रखते हैं, वे शीत गर्मी सहन करने की असमर्थता से रखते हैं। श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र के दसवें अध्याय में 'एगंपियं संजमस्स उबवुहणठाए' यह भी संयम भार निर्वाह करने के लिए है, व्यवहार नय से उपकरण धर्म है तथा निश्चय नय से सब आश्रव है । श्री उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नतीसवें अध्याय के ३४वें सूत्र में 'उबहि पच्चक्खाणेणं अपलिमंथं जणवइ' उपधि छोड़ने से पलिमंथा अर्थात् व्याघात टले तो उपधि रखने से तो पलिमंथ अथात् स्वाध्यायादि में व्याघात बढ़ता है वहां ऐसा कहा है फिर स्थान स्थान पर साधु के लिये अचेल पना कहा है, इसलिये साधु उपधि रखते हैं, वे धर्मोपरण जानकर रखते हैं और इसका त्याग आश्रव जानकर करते हैं ।