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है कि जो ऐसा कहे कि वे चार भेद की विकथा करने वाले हैं, और साधुपने में शंका करे उन्हें तीसरे ठाणे में 'अहिया अणुहाए' कहा है फिर श्री ज्ञाता सूत्र में मोरड़ी के अंडे के न्याय से पांच महाव्रत में शंका करने वाले परलोक में चार संघ में हीनता पावे परभव में संसार के अनन्त दुख पावे ऐसा कहा है। __फिर श्री भगवती सूत्र के पच्चीसवें शतक के सातवें उद्देश्य में छेदोपस्थानीय चरित्र का विरहकाल कम से कम
पठ हजार वर्ष का कहा है इस अपेक्षा से पांचवां आरा पूर्ण होवे उस दिन पर्यन्त साधुपन रहेगा। फिर श्री भगवती सूत्र के वीसवें शतक के आठवें उद्देश्य में महावीर म्वामी के मुक्ति जाने के बाद इक्कीस हजार वर्ष तक साधु साध्वी, श्रावक, आविका ये चारों तीर्थ चलेंगे, इसलिए वर्तमान काल में तो साधु है ही, यहां कई ऐसा कहते हैं कि भरत क्षेत्र में साधु है तो सही परन्तु यहां दिखाई नहीं देते, ऐसा कहने वाले को ऐसा कहें कि यदि यहां साधु नहीं है तो श्रावक किसके प्रतियोधित होंगे ? तथा प्रत्यक्ष में आर्य दिखाई देते हैं या अनार्य ? यदि अनायें है तो जैन के सूत्र कहां से आये ? अनार्य में श्रावक कहां से
आये ? उत्तम जाति वणिक वर्ग: ब्राह्मण वर्ग कहां से आये । और यदि आर्य देश है तो मार्य में साधु क्यों नहीं ? और