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असंयति अत्रती को देने में एकांत पाप कहा है, इस कारण श्रावक को लेना देना अत्रत में है इसलिए एकान्त पाप कहा है, यह बात भी नहीं मिलती, जिस कारण यहां तो गुणवंत पात्र को मोक्ष के लिये देंगे उसको एकान्त पाप कहा परन्तु अन्य श्रावक के दान का तथा अनुकम्पा दान का यहां अधिकार नहीं । अनुकम्पा दान जिण हो नकयाइ पडिसाई ऐसे कहा गया हैं । सातवां दान तो गणिका आदि का है । अतः गणिका तथा पsिमाधारी श्रावक किस प्रकार हो ? पात्र कुपात्र की क्या विशेषता ? अतः पड़िमाधारी श्रावक का दान सातवें दान में नहीं मिलता है ।
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कितने इस प्रकार कहते हैं कि " शेष आठ दान है ।" उनसे पूछे कि पड़िमाधारी प्रमुख को देने में कौनसा गुण ? अनुमोदन हेतु देते हैं या अनुकम्पा लाकर देते हैं अथवा डर कर देते हैं या अहंकार से देते हैं या भोग से देते हैं या उन पर उपकार करने के लिए देते हैं ? इत्यादि कारणों से नहीं अपितु यहां तो केवल गुणों की अनुमोदना के लिए देते हैं, यदि दूसरे कारणों की अपेक्षा से देवे तो आठ दान में मिले और यदि गुणों के अनुमोदन हेतु देवे तो आठ दान धर्म में मिलेंगे । परन्तु आठ दान तो संसारी के हैं मिथ्यात्व है। आठ दान में सुपात्र नहीं परन्तु श्रावक सुपात्र में है। सूत्र में