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(५४) कहा है देखो लोभ के निमित्त से वस्तु दीवी उस वस्तु की क्रिया हल्की, उसके देने से लाभ होवे तो फिर अनुकम्पा के निमित्त दया के परिणाम से दान देवे उसे एकान्त पाप किस प्रकार होवे ? जितनी जितनी ममता हटी उतना उनना पुण्य ही है और यदि पाप है तो आनन्द आदि श्रावकों की पडिमा वहन करते भगवान ने क्यों मना किया ? एक व्यक्ति तिरे तथा दो व्यक्ति डूवे ऐसी क्रिया भगवान कैसे बतावे ? तथा दूसरों को डूबाने से स्वयं किस तरह निरे ? इसीलिये पाप नहीं कहा है। ___ यदि देने से एकान्त पाप ही होता हो तो प्रदेशी गजा ने दान शाला कैसे खुलवाई ? केशीकुमार मुनि ने निषेध क्यों नहीं किया ? तथा अम्बड़ श्राकक दातार को पाप लगना जानता तो फिर सौ (१००) घर पारणा केसे करता ? क्या एक ही घर पारणा करने पर कार्य नहीं चलता ? क्यों व्यर्थ में सो घर वालों को पाप लगाता ? सभी दानों में यदि पाप की श्रद्धा करे तो उसके हृदय में अनुकम्पा नहीं है । पर परिणाम दुष्ट होने मात्र से पाप नहीं कहें।
पडिमाधारी आदि श्रावक के दान का वर्णन सूत्र मे स्थान स्थान पर मिलता है, उनका न्यूनता युक्त (कमर सहित) दान धर्म दान में बताया है वहां गृहस्थ को देना