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(३) भगवान के पधारने पर राजा ने नगर सजाया तथा वंदना करने गया, प्रदेशी राजा ने दान शाला वनवायी, चित्त सारथी ने राजा प्रेदेशी को प्रतिबोध दिलाने हेतु रथ का प्रयोग किया, सुबुद्धि प्रधान ने पानी का उपाय कर जितगत्रु राजा को प्रतियोधित किया, प्रभु मल्लिनाथ जी ने ६ राजाओं को प्रतिबोध देने के लिए मोहन घर बनाया, सूर्याभ आदि देवताओं ने वीतराग प्रभु के सामने नाटक किया, कृष्ण वासुदेव ने थावच्चा पुत्र की दीक्षा के ममय उत्सव की घोषणा करवाई, श्रेणिक राजा ने उद्घोषणा करवाई, गंख पुष्कली श्रावकों ने स्वामिवात्सल्य किया, भगवान महावीर के पधारने पर कोणिक राजा ने वधाई वांटी इत्यादि अनेक चरितानुवाद मिश्र पक्ष में हैं। इन्हें जानना योग्य कहा है । जैसे एकान्त हेय भी स्थापना (प्ररूपणा के) योग्य नहीं वैसे एकान्त उपादेय भी उथापने अर्थात निषेध योग्य भी नहीं। इसी भांति दस 'दान में भी ऐसा ही समझे. आठवां दान धर्म पक्ष में तथा सातवां दान अधर्म पक्ष में, शेप आठ दान मिश्र पक्ष में है । साधु के दान को छोड़कर यदि अन्य सब दानों में पुण्य होता नो नौ दानों को धर्म दान क्यों नहीं कहा ? तथा एकान्त पाप होता तो नौ दान को अधर्म क्यों नहीं कहा ? इस कारण से ज्ञेय पदार्थ उभय पक्ष में है और जो सर्वथा