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(४६) बोलने से मोक्ष प्राप्त होता है। ऐसा श्री सूयगडांग' सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के पांचवे अध्याय में अनाचारी के अधिकार में देख लिया जावे । ___दान गृहस्थी देवे, लेने वाला लेवे ऐसा व्यापार होता हुआ देखकर 'हां' या 'ना', गुण दोष कुछ भी नहीं कहे । यदि गुण कहे तो असंयन की अनुमोदना लगती है और दोष कहे तो वृत्ति का छेद होता है । इस कारण से दोनों भाषा नहीं बोले ज्ञानादि मोक्ष मार्ग की वृद्धि करे । अर्थात् जिस प्रकार असंयम (सावद्य) नहीं होवे वैसे बोले। ऐसा अधिकार सूत्र में कहा है वे सूत्र विरुद्ध प्ररुपणा करते हैं । यहां कोई इस प्रकार कहे कि 'दान दाता पूछे तब साधुओं को मोन करना परन्तु मन में पुण्य श्रद्धना अथवा कोई कहे पाप तो मौन एवं कोई पुण्य तो मौन, मन में दोनों ही श्रद्धे । कोई कहे साधु को मौन करना उसका फल केवली जाने, हमें मालूम नहीं । कोई कहे साधु को मौन साधना चाहिए परन्तु पुण्य पाप मिश्र कुछ भी नहीं श्रद्धे इत्यादि अनेक मत वर्तमान में दिखाई पड़ते हैं। जिन पर सूत्र के आधार से विचार कर कौन सा मत सच्चा है ? उमकी परीक्षा चतुर पुरुप करे ।
प्रश्न-यदि पुण्य होता है तो साधु को पुण्य को पुप्य कहने में क्या दोष है ? और भगवान पुण्य को पुण्य