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( १६ .) आश्रव और कर्म दोनों ही अजीव है । (२) जिस प्रकार स्त्री तो जीव है तथा पली (चम्मच) व घृत ये दोनों अजीव है उमी प्रकार कर्त्ता तो जीव है तथा आश्रय एवं कर्म ये दोनों अजीव है। ___अव भाव आश्रव पर चार दृष्टांत कहते हैं :(१) जिस प्रकार तालाब के लिए आव उसी प्रकार जीव के लिए आश्रय । (२) जिस प्रकार भवन के लिए द्वार उसी प्रकार जीव के लिए आश्रव । (३) जैसे नाव के लिए छिद्र उमी प्रकार जीव के लिए आश्रव । (४) जिस प्रकार सूई के छेद उसी प्रकार जीव के आश्रव । ये भाव आश्रव जीव के परिणामों की अपेक्षा से वताये हैं, परन्तु मुख्य नय से सूत्र में आश्रव को अजीव कहा है। इसलिए आश्रव को समझने के लिए फिर दृष्टांत कहते हैं :(१) जिस प्रकार तालाव और आव वास्तव में एक नहीं उसी प्रकार जीव व आश्रव वस्तुतः एक नहीं। ऐसा क्यों? इसका समाधान- आव पानी आने का द्वार है परन्तु पानी रहने का स्थान नहीं, ऐसे ही आश्व पुण्य पाप आने का मार्ग है परंतु पुण्य पाप के रहने का स्थान नहीं। (२) जिस प्रकार भवन और द्वार दोनों एक नहीं उसी प्रकार जीव और आश्रव एक नहीं, क्योंकि द्वार भवन के हैं और भवन पत्थर द्वारा निर्मित है परन्तु द्वार पत्थर का