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( २० ) नहीं । उसी प्रकार आश्रव भी जीव में है, परन्तु जीव धर्म रूप है और बाश्रव धर्म रूप नहीं। (३) जिस प्रकार नाव और छिद्र एक नहीं उसी प्रकार जीव और आश्रव भी एक नहीं क्योंकि नाव तो काष्ट की है परन्तु बिद्र काट का नहीं उसी प्रकार जीव तो ज्ञान रूप है परन्तु आश्रय ज्ञान रूप नहीं । (४) जिस प्रकार मई और नांका (चिद्र) एक नहीं उसी प्रकार जीव और आश्रब एक नहीं, क्योंकि सूई तो लोहे की है परन्तु नांका (छिद्र) लोहे का नहीं, उसी प्रकार जीव तो ज्ञान रूप है परन्तु याश्रय ज्ञान रूप नहीं। श्री उबवाई और प्रश्न व्याकरण आदि सूत्रों में इस प्रकार कहा है कि शुभाशुभ कनें आश्रय आवे वह याश्रय, उन्हें जानने के लिए चार दृष्टांत बतलाते हैं :(१) जिसके द्वारा पानी आवे उसे नाला या आव कहते हैं उसी प्रकार कम आने के मार्ग को याश्रव कहते हैं। (२) जिस प्रकार मनुष्य के आने के मार्ग को द्वार कहते हैं उसी प्रकार करें आने के मार्ग को आश्रय कहा है। (३) जिस प्रकार नाव में जल आने का मार्ग छिद्र , उसी प्रकार कर्म आने का मार्ग आश्रय । (४) जिस प्रकार मुई में डोरा आने का मार्ग सूई का नाका (छिद्र) उसी प्रकार कर्म आने का मार्ग आश्रव ।