Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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:१: राक्षसवंश की उत्पत्ति
सुहावना मौसम था, ठण्डी मनभावनी हवाएं चल रही थीं। राक्षसद्वीप के अधिपति तडित्केश अपनी पटरानी चन्द्रा के साथ उपवन में एक सरोवर के किनारे वन-क्रीड़ा कर रहे थे। ___ अचानक वृक्ष से एक वानर उतरा और पटरानी चन्द्रा के स्तन पर तीव्र नख-क्षत कर दिया।
भय और पीड़ा के कारण रानी चीख पड़ी।
वानर उछला और छलांग मारकर वृक्ष के तरु-पल्लवों में जा छिपा।
राक्षसपति' तडित्केश ने क्रुद्ध होकर धनुष पर बाण चढ़ाया और तीव्र वेग से छोड़ दिया। तरु-पल्लवों को छेदता हुआ तीर
१ (क) राक्षसवंश की उत्पत्ति द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ के शासन
काल में हुई थी और उसका प्रथम राजा मेघवाहन था। संक्षेप में कथा इस प्रकार है
एक बार तीर्थंकर भगवान अजितनाथ साकेतपुर के वाहर उद्यान में पधारे । देवों ने समवसरण की रचना की । सगर चक्रवर्ती, अन्य राजा तथा असंख्य नर-नारी, पशु-पक्षी, देवी-देवता भगवान की धर्म-देशना सुनकर कृतार्थ हो रहे थे।