Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४५० | जैन कथामाला (राम-कथा)
शिविर में ये बातें हो ही रही थीं कि लवण-अंकुश और रामलक्ष्मण की सेना में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। शत्रु को समीप आया देखकर राम भी चुप नहीं बैठे थे। उन्होंने भी सुग्रीव आदि के सेनापतित्व में अपनी सेना भेज दी थी। युद्ध की भयंकर आवाजें सुन कर भानजों से साथ भामण्डल तुरन्त शिविर से बाहर निकल आया। ___ सुग्रीव आदि ने भामण्डल को देखा तो वे तुरन्त उसके पास आये और पूछने लगे
-ये दोनों कुमार कौन हैं ? -श्रीराम के पुत्र ! –संक्षिप्त सा उत्तर मिला।
-विश्वपावनी सीताजी कहाँ हैं ? –प्रश्न निकला सुग्रीव के मुख से।
-पीछे शिविर में। .
भामण्डल के इस उत्तर को सुनते ही सुग्रीव आदि सभी सुभट युद्ध भूमि छोड़कर शिविर में आये और सीताजी को प्रणाम करके वहीं बैठ गये। स्वामी के पुत्र से स्वामिभक्त सेवक कभी युद्ध नहीं करता।
युद्धभूमि में दुर्द्धर कुमार लवण-अंकुश ने त्राहि-त्राहि मचा दी। राम-पूत्रों के समक्ष राम की सेना भंग हो गई । अव राम-लक्ष्मण स्वयं युद्ध में उतरे और लवण-अंकुश के सम्मुख जा पहुंचे। उन्हें देखते ही राम-लक्ष्मण आयुध रखकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे । लक्ष्मण ने अपने हृदयं के उद्गार व्यक्त किए
-भैया ! कैसे सुन्दर कुमार हैं ? -मेरा तो मन ही नहीं करता इन पर प्रहार करने को। ---इन्हें देखकर हृदय में प्रेम उमड़ा पड़ रहा है । -मैं तो इनका आलिंगन करके तृप्त होना चाहता हूँ।