Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
सीता, सुग्रीव आदि के पूर्वभव | ४७१ । गिर गई। दुःखी होकर पुनर्वसु ने दीक्षा ले ली और भवान्तर में अनंगसुन्दरी को प्राप्त करने का निदान भी । तपस्यापूर्वक मरण करके वह देवलोक को गया और वहाँ से च्यवन करके वासुदेव लक्ष्मण चना।
अनंगसुन्दरी लतामण्डप से उठ कर वन को गई। वहां प्रव्रज्या ग्रहण करके उसने घोर तप किया। आयु के अन्त में जब वह अनशनपूर्वक कायोत्सर्ग में लीन थी उसे एक अजगर निगल गया। समाधिपूर्वक देह-त्यागकर वह देवलोक में देवी हुई और वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण करके लक्ष्मण की पत्नी विशल्या बनी है।
काकन्दी नगरी में वामदेव नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम था श्यामला। श्यामला के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए-वसुनन्द और सुनन्द । एक समय वे दोनों भाई घर ही थे कि एक मासोपवासी मुनि पारणे के.लिए पधारे। दोनों भाइयों ने मुनि को भक्ति भाव से भोजन आदि देकर प्रतिलाभित किया। , इस दान धर्म के प्रभाव से वे दोनों उत्तरकुरु भोगभूमि में जुगलिया . उत्पन्न हुए । वहाँ से आयुष्य पूरा करके सौधर्म देवलोक में देव बने। सौधर्म देवलोक से च्यव कर वे दोनों काकन्दोपुरी के राजा वामदेव की रानी सुदर्शना के गर्भ से प्रियंकर और शुभंकर दो पुत्र हुए। वहाँ उन्होंने चिरकाल तक राज्य भोगा और तत्पश्चात प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । तपस्या के फलस्वरूप उन्हें अगले भव में अवेयक में देव पर्याय प्राप्त हुई। वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण कर उन दोनों देवों ने सती सीता के गर्भ से लवण और अंकुश के रूप में जन्म लिया है। इनके पूर्वभव की माता बहुत समय तक अनेक योनियों में जन्म-मरण करते हुए सिद्धार्थ नाम का श्रावक बनी है। इसी पूर्व जन्म की प्रीति के कारण ही इस श्रावक सिद्धार्थ ने राम के दोनों पुत्रों-लवण और अंकुश को विभिन्न प्रकार से अस्त्र-शस्त्रों और गम की शिक्षा देकर निपुण बनाया।