Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राम का मोक्ष गमन ; ४६७ यह कहकर सीतेन्द्र उन्हें उठाने लगा। परन्तु तत्काल पारे के समान उनका शरीर बिखर गया । सीतेन्द्र ने कई बार प्रयास किया किन्तु सफल न हो सका । अन्त में लक्ष्मण और रावण ने सीतेन्द्र से कहा____-हमारा उद्धार करने के प्रयास में आप भी दुःखी हो रहे हैं । हमें हमारे हाल पर छोड़कर आप देवलोक प्रस्थान कर दीजिये।
सीतेन्द्र ने भी समझ लिया कि वह उन्हें उस भूमि से बाहर नहीं निकाल सकता । 'किसी जीव की गति को वदलना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है'--यह सोचकर सीतेन्द्र उन्हें प्रतिवोध देकर वहाँ से चल दिया। ___ राम के पास आकर सीतेन्द्र ने उन्हें नमन किया और चल दिया। नन्दीश्वरादिक द्वीपों की यात्रा करते हुए मार्ग में देवकुंरु क्षेत्र आया । वहाँ उसे पूर्वजन्म का भाई भामण्डल युगलिया के रूप में दिखाई दिया। पूर्व स्नेह के कारण सीतेन्द्र ने उसे भी प्रतिवोध दिया और अपने कल्प में चला गया।
केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात रामपि पच्चीस (२५) वर्ष तक विचरते हुए जीवों को कल्याण पथ दिखाते रहे । पन्द्रह हजार (१५,०००) वर्प का' आयुष्य पूर्ण करके उन्होंने शैलेंशी दशा अंगीकार की और सिद्ध शिला पर जा विराजे ।
१ (क) उत्तरपुराण के अनुसार(१) राम की आयु तेरह हजार वर्ष थी।
__(उत्तरपुराण पर्व ६७, श्लोक १५०) (२) छद्मस्थ अवस्था के तीन सौ पिचानवे (३६५) वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात राम ऋपि को केवलज्ञान हुआ। (श्लोक ७१६)
(३) केवली होने के छह सौ वर्प वाद फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल सम्मेत शिखर से मुक्ति प्राप्त की । उन्ही के साथ हनुमान भी मुक्त हुए ।
(श्लोक ७१६-७२०)