Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४९८ । जैन कथामाला (राम-कथा)
मर्यादा पुरुपोत्तम राम भगवान राम के स्वरूप में प्रतिष्ठित हुए।
त्रिपष्टि शलाका ७।१० - उत्तर पुराण, पर्व ६८, श्लोक ७१५-७२५
(४) विभीषण आदि कितने ही मुनि अनुदिश विमान में अहमिन्द्र हुए और रामचन्द्रजी की पटरानी सीता एवं पृथिवी सुन्दरी आदि कितनी ही आयिकाएँ (श्रमणियाँ) अच्युत स्वर्ग में देव हुई। बाकी सब सोलह स्वर्गों में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ७२१-७२२) (ख) वाल्मीकि रामायण में
(१) राम की आयु ११,००० वर्ष थी। उन्होंने मर्त्यलोक में इतने ही दिनों तक निवास की प्रतिज्ञा ली थी।
(२) अयोध्या से डेढ़ योजन दूर जाकर श्रीराम सरयू के तट पर , पहुँचे । वहाँ ब्रह्माजी ने उनसे आग्रह किया। तब वे अपने दोनों भाइयों (भरत और शत्रुघ्न) सहित ब्रह्मतेज में लीन हो गये ।
(३) उस समय उनकी (श्रीराम की) कृपा से सभी वानर भालू जिस-जिस देव से उत्पन्न हुए थे उसी में समा गये । अन्य भक्त जन भी सरयू में डुबकी लगाकर स्वर्ग गये ।
(४) इस प्रकार विष्णु जो राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न चार अंशों में विभाजित होकर पृथ्वी पर अवतरित हुए थे वे पुनः एक होकर विष्णु रूप में प्रतिष्ठित हुए।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड] (ग) तुलसीकृत रामचरितमानस में भी यही सब वर्णन है ।
[लव-कुश काण्ड दोहा ६५-६८]