Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 536
________________ ४८० | जैन कयामाला (राम-कथा) उपचार का ढोंग किया। सभी जानते थे कि लक्ष्मणजी का यह शव मात्र है। इस पर किसी भी प्रकार का उपचार कर लिया जाय यह जीवित नहीं हो सकता। परन्तु राम की आज्ञा का उल्लंघन कौन करे ? ___लक्ष्मण सजीवित न हो पाये तो राम जोर-जोर से विलाप करने लगे। उनके आक्रन्दन को सुनकर विभीषण आदि भी आ गये और वे भी रुदन करने लगे। माता कौशल्यादि पुत्र शोक से व्याकुल होकर वार-वार मूच्छित होने लगीं। सम्पूर्ण अयोध्या में शोक व्याप्त हो गया । प्रत्येक मार्ग, गृह, दुकान सभी स्थानों पर आक्रन्द और शोक छा गया। उस समय लवण और अंकुश ने विनीत स्वर में राम से कहा -पिताजी ! काका बिना हम राजमहल में नहीं रह सकते । आप हमें प्रव्रज्या की आज्ञा दीजिए। पुत्रों की वात सुनकर राम हतप्रभ रह गये । उनसे कुछ कहते ही न वना। ____ दोनों भाइयों ने पिता को प्रणाम किया और अमृतघोष मुनि के चरणों में जाकर प्रवजित हो गये। अनुक्रम से घोर तपस्या करके दोनों भाई-लवण और अंकुश मोक्ष गय। . . श्रीराम भाई के वियोग में बार-बार मूच्छित होते रहे। वे पुनःपुनः सचेत हो जाते और पुनः-पुन: अचेत । सचेत होने पर उन्मत्त की भाँति विलाप करने लगते । श्रीराम की यह दशा देखकर विभीषण आदि ने उनसे कहा- . __ -स्वामी ! आप तो महापराक्रमी और वीर हैं । धैर्यवान होकर. भी यह अधैर्य कैसा ? लक्ष्मणजी का अग्नि-संस्कार करिये।

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