Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 541
________________ वासुदेव की मृत्यु . ४८५ - हाँ | - तो मेरी प्रिया और आपके भाई की दशा एक-सी है । Rata - हाँ | - फिर मेरी प्रिया मुर्दा और आपका भाई ....... आगे के शब्द देव ने नहीं कहे और राम के चेहरे पर प्रतिक्रिया देखने लगा । श्रीराम की आँखों के सामने से मोह का पर्दा हट गया। उनके विवेक चक्षु खुल गये । उन्होंने समझ लिया कि अब तक वे अनुज की देह का भार ही ढो रहे थे । जब तक वे दृष्टि ऊपर करके सामने देखें - न वहाँ वह पुरुष था और न स्त्री का शव और न ही उलटे कार्य करने वाला मनुष्य । श्रीराम ने समझ लिया कि यह सव उन्हें बोध प्रदान करने हेतु देवमाया थी । जटायु और कृतान्तंवदन दोनों देव अपने - अपने स्थानों को जा चुके थे । 'श्रीराम के हृदय में वैराग्य भावना वलवती हो चुकी थी । उन्होंने लक्ष्मण का दाह संस्कार कर दिया । विशेष - (क) उत्तर पुराण में लक्ष्मण को मृत्यु का कारण दूसरा दिया है - एक रात्रि को लक्ष्मणजी शय्या पर सोये हुए थे । उन्हें तीन स्वप्न दिखाई दिये - (१) मदोन्मत्त हाथी द्वारा वृक्ष का उखाड़ा जाना, (२) राहु द्वारा निगले हुए सूर्य का रसातल में चला जाना, (३) चूने से पुते हुए विशाल राजभवन के एक अंश का गिर जाना । ओर ( श्लोक ६६२-६४ ) राम ने इनका फल स्वप्न के फलस्वरूप लक्ष्मण ने यह स्वप्न राम को सुनाये । एकान्त में पुरोहित से पूछा । उसने बताया --- पहले

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