Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 548
________________ ४६२ / जैन कथामाला (राम-कथा) - ऐसा कठोर अभिग्रह धारण करके मुनि राम शरीर से निष्पृह होकर समाधि में लीन हो गये। X एक समय राजा प्रतिनन्दी अश्व पर सवार होकर वन की तरफ चला। अश्व विपरीत शिक्षा वाला था। ज्यों-ज्यों राजा उसकी लगाम खींचकर रोकने का प्रयास करता त्यों-त्यों वह और भी तीव्र गति से चलता। अन्त में वह नन्दनपूण्य सरोवर की कीचड़ में फंस गया। राजा की खोज करते हुए पीछे-पीछे सैनिक भी आये । उन्होंने घोड़े और घुड़सवार दोनों को कीचड़ से निकाला। राजा प्रतिनन्दी ने वहीं शिविर डाल दिया और स्नान आदि से निवृत्त होकर - भोजन किया। उसी समय मुनि राम पारणे की इच्छा से वहां आये। राजा ने वचे हुए भात आदि से उन्हें प्रतिलाभित किया। उसी समय आकाश से देवों द्वारा पुष्प वृष्टि हुई। मुनि राम ने धर्म-देशना दी। उसे सुनकर प्रतिनन्दी आदि राजा तथा अन्य लोगों ने सम्यक्त्व सहित श्रावक के वारह व्रत ग्रहण कर लिए। वनवासी देवों द्वारा पूजित मुनि राम वहाँ कितने ही काल तक रहे । वे धीर-गम्भीर मुनि एक मास, दो मास, चार-चार मास वाद पारणा करते और एक ही स्थान पर अडोल-अकम्प अवस्था में ध्यानलीन रहते । मुक्ति के अभिलाषी मुनि राम कभी पर्यंकासन लगाते तो कभी खड्गासन लगाकर आत्म-ध्यान करते। इस प्रकार मुनि श्रीराम दुद्धर तप करने लगे।

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