Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 538
________________ ४८२ | जैन कथामाला (राम-कथा) वज्रावर्त धनुष का आस्फालन किया । धनुष्टंकार का घोर शब्द दशों दिशाओं में व्याप्त हो गया । माहेन्द्र देवलोक में उनके मित्र जटायु का दृढ़ स्नेह के कारण आसन कंपायमान हुआ। वह अन्य देवों को साथ लेकर तुरन्त आया। राक्षसों और विद्याधरों ने देखा कि अव भी इनके पक्ष में देवगण हैं तो भयभीत होकर भाग गये। उन्होंने समझ लिया कि राम के जीवित रहते उनका यह साहस कभी सफल न होने वाला दुस्साहस मात्र ही है। अपनी असफलता से उन्हें वैराग्य जाग्रत हुआ और वे अति वेग मुनि के चरणों में जाकर दीक्षित हो गये । ___जटायु देव ने राम की यह उन्मत्त दशा देखी तो उसने उन्हें बोध देने का प्रयास किया। 'सोधे उपदेश का तो इन पर कोई प्रभाव पड़ेगा नहीं' यह भली-भांति समझकर उसने उल्टे काम करने प्रारम्भ किये। एक सूखे वृक्ष को वार-बार पानी से सींचने लगा, पाषाण के ऊपर कमल खिलाने के लिए उस पर बीज वोने लगा, मरे हुए वैल को हल में जोतकर खेती करने का प्रयास किया, सूखे खेत में वीज डाल दिये, रेती डालकर कोल्हू से तेल निकालने में प्रयत्नशील हुआ। . राम उसकी इन विचित्र क्रियाओं को देख रहे थे। वे हँसकर व्यंग्यपूर्वक बोले -अरे मूर्ख पुरुष ! कहीं ढूंठ भी जलसिंचन से फल-फूल सकता है, क्या पत्थर पर कभी कमल खिल सकते हैं, मरा हुआ बैल क्या खेती करेगा? क्या सूखे खेत में कहीं अंकुर उपजते हैं ? कहीं रेती से भी तेल निकलता है ? . . .. पुरुष,ल्पी देव ने उत्तर दिया

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