Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 534
________________ रहा ४७८ | जैन कयामाला (राम-कथा) है। ऐसे क्षणभंगुर संसार से जितनी शीघ्र हो सके निकल जाना ही ठीक है।' ___ यह विचार करके हनुमान अपने नगर आये और पुत्र को राज्य भार देकर धर्मरत्न आचार्य के पास, प्रवजित हो गये । उनके साथ साढ़े सात सौ राजा भी दीक्षित हुए। उनकी पत्नियों ने भी लक्ष्मीवती आर्या के पास व्रत ग्रहण कर लिए। __हनुमान घोर तप करने लगे। अनुक्रम से ध्यानाग्नि में अपने सभी कर्मों का क्षय कर दिया और शैलेशी दशा प्राप्त कर अनन्त सुख में जा विराजे । उन्होंने अमर अविनाशी पद प्राप्त कर लिया। हनुमान की प्रव्रज्या का समाचार सुनकर श्रीराम के मुख से अनायास ही निकल गया-'अहो ! भोग-सुख का त्याग करके हनुमान ने महाकष्टकारी दीक्षा कैसे ग्रहण कर ली ?' श्रीराम की यह विचारणा अवधिज्ञान से जानकर सौधर्म इन्द्र सभा में कहने लगा -देखो ! कर्म की गति कैसी विचित्र है ? राम जैसा चरमशरीरी और विवेकी पुरुष भी अभी तक धर्म से दूर है। दूर ही नहीं वल्कि विषय सुख की प्रशंसा करता है । लक्ष्मण पर उनका ऐसा प्रगाढ़ स्नेह है कि वे दीक्षा लेने में असमर्थ हैं। __ इन्द्र के इन वचनों को सुनकर दो देवताओं को कुतूहल हुआ। उन्होंने राम-लक्ष्मण के स्नेह की परीक्षा करनी चाही। अयोध्या में लक्ष्मण के महल में आकर उन्होंने माया रची । लक्ष्मण को अपना सारा अन्तःपुर रोता हुआ दिखाई दिया। रानियाँ रोती-रोती कह रही थीं -हे राम ! आपकी अकाल मृत्यु कैसे हो गई ? आप हम सब.

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