Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
४७४ | जैन कथामाला (राम-कथा) ___यह विचारकर राम ने साध्वी सीता का वन्दन किया। लक्ष्मण आदि अन्य और भी अनेक राजाओं ने केवली को नमन-वन्दन किया और राम परिवार सहित अयोध्या लौट आये।
देखा । इस पर मुनि चन्द्रचूल (राजपुत्र) ने वैसा ही होने का निदान कर लिया ।
कालधर्म प्राप्त कर चन्द्रचूल सनत्कुमार स्वर्ग के कनकप्रम विमान में विजय नाम का देव हया और स्वर्णचूल मुनि (मन्त्री का पुत्र) उसी स्वर्ग के मणिप्रभ विमान में मणिचूल नाम का देव हुआ । दोनों की ही आयु सात सागर की थी।
देवलोक से अपना आयुष्य पूर्ण करके (स्वर्णचूल मुनि का जीव) देव मणिचूल बनारस के राजा दशरथ की सुवाला नाम की रानी के गर्भ में आया । फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी के दिन मघा नक्षत्र में रानी ने पुत्र प्रसव किया । उस पुत्र का नाम राम रखा गया । उसकी आयु १३,००० (तेरह हजार) वर्ष की थी।
उसी राजा दशरथ की सुमित्रा रानी के उदर से माघ शुक्ला एकम (पड़वा) के दिन विशाखा नक्षत्र में विजय देव का जीव (राजा का पुत्र) उत्पन्न हुआ । उसकी आयु १२,००० (बारह हजार) वर्ष की थी और उसका नाम लक्ष्मण था।
' दोनों ही भाई पन्द्रह धनुष ऊँचे और ३२ शुभ लक्षणों से युक्त थे। राम के कुमार वय के पचपन वर्ष और लक्ष्मण के पचास वर्ष व्यतीत हो जाने पर उनका ऐश्वर्य प्रगट हुआ ।
(२) धातकीखण्ड द्वीप के, पूर्व भरतक्षेत्र में सार समुच्चय नाम का देश है। उसी देश के नाकपुर नगर में प्रसिद्ध राजा नरदेव राज्य करता था । एक दिन उसने अनन्त नाम के गणधर से प्रव्रज्या ले ली। उसने तपश्चरण तो उत्कृष्ट किया किन्तु चपलवेग विद्याधर को देखकर