Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 515
________________ सीताजी को अग्नि-परीक्षा | ४५६ कहते-कहते राम का स्वर कातर हो गया। सीता की आँखों में भी आँसू भर आये। - सभी जानते थे कि राम का निश्चय अटल है और अव तो सीता भी दृढ़ प्रतिज्ञ है । अत: तीन सौ हाथ लम्बा-चौड़ा और दो पुरुष प्रमाण गहरा एक गड्डा खोदकर चन्दन की लकड़ियों से भर दिया गया। उसी समय जयभूषण केवली का कैवल्योत्सव मनाने हेतु आये हुए इन्द्र से देवताओं ने कहा- स्वामी ! मिथ्या लोकापवाद के कारण सती शिरोमणि सीताजी अग्नि में प्रवेश कर रही हैं। ____ इन्द्र में तुरन्त अपनी पैदल सेना के अधिपति को आज्ञा दीशीघ्र जाकर सती की रक्षा करो और शील की महिमा संसार में फैलाओ। यह आज्ञा देकर इन्द्र जयभूपण केवली का कैवल्योत्सव मनाने लगा। जयभूपण वैताढयगिरि की उत्तर श्रेणी के हरिविक्रम राजा के पुत्र थे । उनका विवाह तीन सौ स्त्रियों के साथ हुआ। एक वार उसने किरणमण्डला नाम की अपनी स्त्री को उसके मामा के पुत्र हेमशिख के साथ सोता हुआ देखा । जयभूषण ने उस स्त्री को निकाल दिया और स्वयं दीक्षा ग्रहण कर लो। किरणमंडला मरकर विद्युदंष्ट्रा नाम की राक्षसी हुई । पूर्वजन्म के वैर के कारण वह मुनि जयभूपण पर उपसर्ग करने लगी। मुनि ने अविचल कायोत्सर्ग धारण किया और शुक्लध्यान के वल से केवलज्ञान प्राप्त किया। ___ उन्हीं केवली जयभूषण का कैवल्योत्सव मनाने इन्द्र आदि देव जा रहे थे।

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